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प्रेमचन्द की कहानियाँ 21

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :157
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9782

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग

प्रेमचन्द की सभी कहानियाँ इस संकलन के 46 भागों में सम्मिलित की गईं हैं। यह इस श्रंखला का इक्कीसवाँ भाग है।

अनुक्रम

1. नसीहतों का दफ्तर
2. नाग-पूजा
3. नादान दोस्त
4. निमंत्रण
5. निर्वासन
6. नेउर
7. नेकी

1. नसीहतों का दफ्तर

बाबू अक्षयकुमार पटना के एक वकील थे और बड़े वकीलों में समझे जाते थे। यानी रायबहादुरी के करीब पहुँच चुके थे। जैसा कि अकसर बड़े आदमियों के बारे में मशहूर है, इन बाबू साहब का लड़कपन भी बहुत गरीबी में बीता था।

माँ-बाप जब अपने शैतान लड़कों को डाँटते-डपटते तो बाबू अक्षयकुमार का नाम मिसाल के तौर पर पेश किया जाता था- अक्षय बाबू को देखो, आज दरवाजे पर हाथी झूमता है, कल पढ़ने को तेल नहीं मयस्सर होता था, पुआल जलाकर उसकी आँच में पढ़ते, सड़क की लालटेनों की रोशनी में सबक याद करते। विद्या इस तरह आती है। कोई-कोई कल्पनाशील व्यक्ति इस बात के भी साक्षी थे कि उन्होंने अक्षय बाबू को जुगनू की रोशनी में पढ़ते देखा है जुगनू की दमक या पुआल की आँच में स्थायी प्रकाश हो सकता है, इसका फैसला सुननेवालों की अक्ल पर था।

कहने का आशय यह है कि अक्षयकुमार का बचपन का जमाना बहुत ईर्ष्या करने योग्य न था और न वकालत का जमाना खुशनसीबियों की वह बाढ़ अपने साथ लाया जिसकी उम्मीद थी। बाढ़ का ज़िक्र ही क्या, बरसों तक अकाल की सूरत थी यह आशा कि सियाह गाउन कामधेनु साबित होगा और दुलिया की सारी नेमतें उसके सामने हाथ बाँधे खड़ी रहेगी, झूठ निकली। काला गाउन काले नसीब को रोशन न कर सका।

अच्छे दिनों के इन्तजार में बहुत दिन गुजर गए और आखिरकार जब अच्छे दिन आये, जब गार्डन पार्टियों में शरीक होने की दावतें आने लगीं, जब वह आम जलसों में सभापति की कुर्सी पर शोभायमान होने लगे तो जवानी बिदा हो चुकी थी और बालों को खिजाब की जरुरत महसूस होने लगी थी। खासकर इस कारण से कि सुन्दर और हँसमुख हेमवती की खातिरदारी जरुरी थी जिसके शुभ आगमन ने बाबू अक्षयकुमार के जीवन की अन्तिम आकांक्षा को पूरा कर दिया था।

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